बलरामपुर। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी को पहली बार संसद में भेजने का गौरव जिले को हासिल है। जिले से उनका बहुत गहरा नाता रहा है। आज भी बलरामपुर की स्मृतियों में अटल की स्पष्ट छाप दिखाई देती है।
वर्ष 1957 में अटल बलरामपुर लोकसभा से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। उन्होंने कांग्रेस के बैरिस्टर हैदर हुसैन को हराया था। हालांकि, 1962 का चुनाव वो कांग्रेस की सुभद्रा जोशी से 200 मतों से हार गए थे लेकिन 1967 में अटल ने सुभद्रा जोशी को हराकर दोबारा विजय प्राप्त की थी। इसके बाद अटल 15वर्षों तक बलरामपुर की राजनीति में सक्रिय रहे।
वे 1957 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए ट्रेन से यहां पहुंचे थे। उस दौरान एक जीप पर पहले धक्का लगाते थे फिर चालू होने पर उसी से प्रचार करने के लिए जाते थे। तमाम कार्यकर्ता बैलगाड़ियों और साइकिलों से गांव-गांव प्रचार करने निकलते थे। उनके पुराने साथियों से राजनीति के समय की कहानियां सुन चुके भाजपा नेता डीपी सिंह बताते हैं कि अटल के साथ ही गैसड़ी विधानसभा क्षेत्र से जनसंघ के विधायक रहे सुखदेव प्रसाद बताते थे कि वे खुद तो संयमित भाषा का तो प्रयोग करते ही थे, अपने कार्यकर्ताओं को भी संयम का पाठ पढ़ाते थे।
वे चौक बाजार में रहने वाली मुंशियायिन काकी के पेड़े जरूर खाते थे। शाम को वे कार्यालय से घूमते टहलते मुंशियायिन काकी के घर तक पहुंच जाते थे और उनके पेडे़ खाकर ही सराय फाटक स्थित जनसंघ कार्यालय जाते थे।
खपरैल मकान से शुरू किया था रानीतिक सफर
शहर से पांच किमी दूर खगईजोत के एक खपरैल के मकान से शुरू हुआ अटल का राजनैतिक सफर देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा। 1957 में वे लाटबख्श सिंह के पुश्तैनी मकान के खपरैल की कोठरी में रहा करते थे। बरामदे में उनकी चौपाल लगा करती थी। वे तख्त पर सोते थे। एक लकड़ी की बेंच थी जिसपर उनसे मिलने आने वाले लोग बैठा करते थे। 1957 से लेकर 1970 तक वे जबभी बलरामपुर में होते रात इसी कोठरी में बिताते थे। खपरैल की यह कोठरी आज भी अटल की तमाम स्मृतियों को सहेजे हुए है।